चित्रकूट, उत्तर प्रदेश – जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हाल ही में एक गोष्ठी में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की प्रमुख मायावती और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर पर विवादित बयान दिए हैं, जिससे राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है।
चित्रकूट स्थित जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में ‘भारतीय न्याय संहिता 2023’ पर आयोजित एक गोष्ठी में रामभद्राचार्य ने कहा कि मनुस्मृति की आलोचना करने वालों में मायावती प्रमुख हैं, लेकिन उन्हें मनुस्मृति का ज्ञान नहीं है। उन्होंने कहा, “मनु को गाली देने वालों को क्या कहूं? बहन कहने में संकोच लग रहा है। मायावती ने मनु को गाली देने की शुरुआत की, लेकिन उनको मनुस्मृति के बारे में एक अक्षर का भी ज्ञान नहीं है।”
डॉ. अंबेडकर के बारे में उन्होंने कहा कि यदि उन्हें संस्कृत का ज्ञान होता, तो वे मनुस्मृति को जलाने का प्रयास नहीं करते। उन्होंने दावा किया कि मनुस्मृति में राष्ट्र विरोधी कुछ भी नहीं लिखा गया है।
इन बयानों के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ आनी शुरू हो गई हैं। बसपा समर्थकों और दलित संगठनों ने रामभद्राचार्य के बयानों की आलोचना की है, जबकि कुछ हिंदू संगठनों ने उनका समर्थन किया है।
यह पहली बार नहीं है जब रामभद्राचार्य अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में हैं। हाल ही में सतना, मध्य प्रदेश में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा था कि जब तक वे जीवित हैं, हिंदू धर्म का कोई नुकसान नहीं होगा।
रामभद्राचार्य के ताजा बयानों ने एक बार फिर से सामाजिक और राजनीतिक बहस को जन्म दिया है, जिससे विभिन्न समुदायों में प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य: एक संत, विद्वान और समाजसेवी
चित्रकूट, उत्तर प्रदेश – जगद्गुरु रामभद्राचार्य का नाम भारत के प्रमुख संतों में गिना जाता है। वे न केवल एक आध्यात्मिक गुरु हैं, बल्कि एक महान विद्वान, लेखक, कवि और समाजसेवी भी हैं। वे दिव्यांग होने के बावजूद अपने अद्भुत ज्ञान और आध्यात्मिकता से दुनिया को प्रेरित कर रहे हैं।
रामभद्राचार्य कौन हैं?
जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था। जन्म के कुछ ही महीनों बाद वे अपनी दृष्टि खो बैठे, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ति असाधारण रही। उन्होंने बिना ब्रेल लिपि की सहायता के ही चारों वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण और कई अन्य ग्रंथ कंठस्थ कर लिए।
शिक्षा और विद्वता
उन्होंने संस्कृत साहित्य, व्याकरण और दर्शन में गहन अध्ययन किया और वाराणसी के प्रसिद्ध संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने 80 से अधिक ग्रंथों की रचना की है, जिनमें रामचरितमानस पर लिखी गई उनकी टीकाएँ अत्यंत लोकप्रिय हैं।
आध्यात्मिक योगदान
रामभद्राचार्य को जगद्गुरु रामानंदाचार्य पीठ का प्रमुख नियुक्त किया गया था। वे भगवान श्रीराम और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सक्रिय रूप से लगे हुए हैं। वे नियमित रूप से प्रवचन देते हैं और श्रीराम कथा के माध्यम से लाखों भक्तों को आध्यात्मिक संदेश देते हैं।
समाज सेवा और शिक्षा
रामभद्राचार्य केवल आध्यात्मिक मार्गदर्शक ही नहीं, बल्कि समाजसेवा में भी अग्रणी हैं। उन्होंने जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट की स्थापना की, जो विशेष रूप से दिव्यांग छात्रों के लिए समर्पित है। यह भारत का एकमात्र विश्वविद्यालय है जहां दिव्यांग विद्यार्थियों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है।
विवाद और चर्चाएँ
हाल ही में, रामभद्राचार्य अपने बयानों के कारण विवादों में रहे हैं। उन्होंने मायावती और डॉ. भीमराव अंबेडकर को लेकर विवादित बयान दिए, जिससे राजनीतिक हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। उनके बयानों पर कई संगठनों ने आपत्ति जताई, जबकि कुछ हिंदू संगठनों ने उनका समर्थन किया।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य भारतीय संस्कृति और धर्म के अद्वितीय ज्ञाता हैं। उनकी विद्वता, भक्ति और समाजसेवा से लाखों लोग प्रेरित होते हैं। हालांकि, वे कभी-कभी अपने बयानों को लेकर विवादों में भी रहते हैं। फिर भी, उनका योगदान भारतीय आध्यात्मिकता और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य है।